ब्यूरो रिपोर्ट: शरद बाजपेई, सीतापुर
बिसवां (सीतापुर)। जनपद के सुप्रसिद्ध कवि साहित्य भूषण कमलेश मौर्य 'मृदु' की अध्यक्षता में गढ़ाकोला, उन्नाव स्थित निराला सभागार में एक भव्य कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। यह आयोजन भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय एवं संस्कृति मंत्रालय, उत्तर प्रदेश सरकार के संयुक्त तत्वावधान में क्रांतिवीर चंद्रशेखर आज़ाद की जयंती के उपलक्ष्य में सम्पन्न हुआ।
कार्यक्रम की शुरुआत मां सरस्वती एवं अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद के चित्रों के समक्ष दीप प्रज्वलन के साथ हुई, जिसका शुभारंभ अध्यक्ष कमलेश मौर्य 'मृदु' ने किया। उनके साथ नोडल अधिकारी प्रो. सीमा भारद्वाज, वरिष्ठ कवि वेदव्रत बाजपेई, गीतकार गजेन्द्र प्रियांशु, कवि अशोक अग्निपथी, अटल नारायण, प्रियंका शुक्ला, विनीत वर्मा तथा राष्ट्रीय कवि संगम के पूर्वी उत्तर प्रदेश अध्यक्ष एवं संस्कार भारती अवध प्रांत के उपाध्यक्ष शिवकुमार व्यास सहित कई गणमान्य जनों ने दीप प्रज्वलन में भाग लिया।
मुख्य अतिथि के रूप में क्षेत्रीय विधायक आशुतोष शुक्ला एवं विशिष्ट अतिथि उपाध्यक्ष राज्य ललित कला अकादमी, गिरीशचंद्र मिश्र (राज्यमंत्री स्तर) उपस्थित रहे। दोनों अतिथियों ने अपने प्रेरक उद्बोधनों में ऐसे सांस्कृतिक आयोजनों की निरंतरता एवं संरक्षण पर बल दिया।
कार्यक्रम का प्रभावी संचालन शिवकुमार व्यास ने किया।
अध्यक्षीय काव्य पाठ करते हुए कमलेश मौर्य 'मृदु' ने वीर चंद्रशेखर आज़ाद को श्रद्धांजलि स्वरूप ओजस्वी पंक्तियाँ पढ़ीं:
नाम सुनकर के ब्रिटिश राज्य कांपता था, भारत के ऐसे क्रांति दूत को नमन है।
एक हाथ मूंछ पर, एक माउज़र पर, मन मध्य साहस अकूत को नमन है।
बज्र जैसी देह यष्टि, अग्नि-ज्वाला जैसी दृष्टि, स्वत: स्फूर्त बलबूत को नमन है।
ललित ललाम क्रांति के समग्र धाम, सीताराम-जगरानी जी के पूत को नमन है।
वेदव्रत बाजपेई ने अपनी ओजस्वी कविता से वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों पर प्रकाश डाला। उनकी चर्चित पंक्ति "लाल किले का रस्ता भारत की गलियों से जाता है" को श्रोताओं ने खूब सराहा।
गीतकार गजेन्द्र प्रियांशु के मुक्तकों और गीतों ने मंच पर गहराई और भावनात्मक प्रवाह लाया। वहीं शिवकुमार व्यास की कविता "मैं अल्फ्रेड पार्क का बूढ़ा बरगद बोल रहा हूं" ने श्रोताओं को झकझोर दिया और पूरे सभागार में तालियों की गूंज छा गई।
अशोक अग्निपथी की काकोरी कांड पर आधारित रचना, अटल नारायण के देशभक्ति छंद, और प्रियंका शुक्ला की श्रृंगार रस में डूबी कविता ने कार्यक्रम को बहुआयामी बना दिया। प्रियंका की इन पंक्तियों ने विशेष ध्यान खींचा:
जो राज छिपा कर रखे थे, वो सब राज पता हैं मुझे।
गैरों के यहां बैठ कर बोले गए सभी अल्फ़ाज़ पता है मुझे।
और लाख कर ले कोशिशें मुझको हराने की,
आस्तीन के सांपों के भी मिज़ाज पता है मुझे।
अंत में प्रो. सीमा भारद्वाज ने सभी कवियों, अतिथियों एवं आयोजकों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए आयोजन को सफल बनाने में योगदान देने वालों को धन्यवाद दिया।
यह कवि सम्मेलन न केवल चंद्रशेखर आज़ाद के बलिदान को श्रद्धांजलि थी, बल्कि कविता के माध्यम से देशभक्ति, सामाजिक चेतना और सांस्कृतिक मूल्यों को पुनः जीवंत करने का एक सशक्त प्रयास भी रहा।
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