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भगवान परशुराम जी की जन्मभूमि परशुरामपुरी (जलालाबाद) में 150 फीट ऊँची प्रतिमा की स्थापना हेतु


स्टेट ब्यूरो हेड योगेन्द्र सिंह यादव
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परशुरामपुरी जलालाबाद में भगवान परशुराम जी की जन्मभूमि में भगवान परशुराम जी की एक भव्य और अद्वितीय प्रतिमा स्थापित की जानी चाहिए, जिसकी ऊँचाई कम से कम डेढ़ सौ फीट हो... यह प्रतिमा न केवल हमारे धार्मिक और सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक होगी बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनेगी....

जैसे हरिद्वार में हर की पौड़ी पर गंगा तट पर विशाल और भव्य मूर्तियाँ स्थापित हैं और जैसे शाहजहांपुर के हनुमतधाम पर हनुमान जी की 104 फीट की प्रतिमा स्थापित है बिल्कुल उसी तरह से परशुरामपुरी नगर में भी भगवान परशुराम की एक प्रतिमा स्थापित की जाए... जो दूर से ही श्रद्धालुओं के मन में आस्था और भक्ति का संचार करेगी.. परशुरामपुरी नगर में भगवान् परशुराम की प्रतिमा एक अलौकिक और अद्वितीय पहचान बन सकती है... यह प्रतिमा न केवल स्थानीय श्रद्धालुओं के लिए, बल्कि पूरे प्रदेश और देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर के भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र होगी..!!

नगरवासियों की माने तो इस प्रतिमा का सबसे उचित स्थान थाना कोतवाली या तहसील के समीप सबसे उचित रहेगा, "क्योंकि यह

स्थान नगर क्षेत्र में सबसे ऊंचाई पर स्थित है", तहसील के पास स्थित सबसे ऊँचा तिराहा होना चाहिए, जहां पर वे प्रतिमा स्थापित की जाए... यह स्थान न केवल दृष्टिगत रूप से प्रमुख है... बल्कि यहाँ से गुजरने वाले हर व्यक्ति की नजर सहज ही उस प्रतिमा पर पड़ेगी... गोल चक्कर के साथ, इसे सबसे उच्च और सुरक्षित स्थान पर स्थापित किया जाना चाहिए... ताकि यह दूर-दूर से दिखाई दे और क्षेत्र का गौरव बढ़ाए..!!

परशुराम जी केवल एक धार्मिक व्यक्तित्व ही नहीं, बल्कि धर्म, न्याय, और वीरता के प्रतीक हैं... उनकी मूर्ति हमें याद दिलाएगी कि सत्य और धर्म की रक्षा के लिए दृढ़ संकल्प और साहस आवश्यक है...इस प्रकार की प्रतिमा से हमारी आने वाली पीढ़ी में अपने इतिहास और महापुरुषों के प्रति गर्व और आदशों का भाव उत्पन्न करेगी...!!!

इसके अतिरिक्त, यह स्थान धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा देगा... आसपास के व्यापारियों, दुकानदारों और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी इसका लाभ मिलेगा... प्रतिमा के साथ उचित प्रकाश व्यवस्था, उद्यान, और बैठने की व्यवस्था करके इसे एक सुंदर और पवित्र स्थल के रूप में विकसित किया जा सकता है...!!

अंत में, मैं यही दोहराना चाहता हूँ कि हम सभी का उद्देश्य केवल अपने क्षेत्र की धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान को और सशक्त बनाना है... क्योंकि यह विचार केवल एक आस्था और सम्मान की भावना से प्रेरित है... यदि यह सपना साकार होता है... तो यह हम सभी परशुरामपुरी वासियों के लिए बहुत ही गौरवशालीक्षण होगा, यह हमारे रामताल की शान, गौरव और पहचान का प्रतीक बन जाएगा, जिसे देखकर आने वाली पीढ़ियाँ भी गर्व महसूस करेंगी...।

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