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“खेत के ऊपर मेड़, मेड़ के ऊपर पेड़” – मेड़बंदी विधि से बढ़ रहा भू-जल स्तर


स्टेट ब्यूरो हेड योगेन्द्र सिंह यादव ✍🏻 

शाहजहाँपुर : 28 सितम्बर, 2025

प्रदेश सरकार भू-जल स्तर को पुनर्जीवित करने और वर्षा जल को खेतों में रोकने के लिए विशेष कार्यक्रम चला रही है। भारतीय परंपरा में जल संरक्षण की सबसे पुरानी और प्रभावी विधि है – “खेत के ऊपर मेड़, मेड़ के ऊपर पेड़, वर्षा की बूंद जहाँ गिरे, वहीं रुके”। जिस खेत में जितना अधिक पानी ठहरता है, वह उतना ही उपजाऊ बनता है।

प्राचीन विधि की अहमियत

पुरखों ने खेती योग्य भूमि तैयार करते समय मेड़बंदी जैसी सरल और कारगर तकनीक विकसित की। मेड़ खेत की सीमा को सुरक्षित रखती है, वर्षा का पानी रोकती है और मिट्टी के पोषक तत्वों को बहने से बचाती है। इससे भूमि की नमी बनी रहती है और जैविक खाद का प्राकृतिक स्रोत भी तैयार होता है।

फायदे

  • भू-जल संचयन: वर्षा जल को खेत में रोककर भू-जल स्तर बढ़ता है।
  • उर्वरा शक्ति में वृद्धि: मिट्टी कटाव रुकने से पोषक तत्व खेत में ही रहते हैं।
  • जैविक खाद: मेड़ों पर पत्तों के सड़ने से प्राकृतिक खाद मिलती है।
  • पशु-चारे की उपलब्धता: मेड़ों पर उगाई गई वनस्पति पशुओं के लिए चारे का स्रोत है।

पेड़ों और फसलों का चयन

मेड़ों पर बेल, सहजन, सागौन, करौंदा, अमरूद, नीबू, बेर, कटहल, शरीफा जैसे फलदार और औषधीय पेड़ लगाए जा सकते हैं। इनकी छाया कम पड़ती है और पत्ते जैविक खाद देते हैं। मेड़ पर अरहर, मूंग, उर्द, अलसी, सरसों, ज्वार जैसी कम पानी वाली फसलें भी उगाई जा सकती हैं।

आधुनिक संदर्भ

भले ही सिंचाई के लिए तालाब, कुएँ, ट्यूबवेल और नहर जैसे साधन हों, लेकिन कई क्षेत्रों की खेती अब भी वर्षा पर निर्भर है। खासकर बुंदेलखंड जैसी पठारी भूमि में मेड़बंदी से खेत उपजाऊ बनाए जा रहे हैं। ड्रिप या फुहारा पद्धति से सिंचाई की जाए, पानी का मूल स्रोत तो वर्षा या भू-जल ही है।

सरकार की पहल

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खेत का पानी खेत में ही रोकने पर जोर दिया है। भूमिगत जल पर बढ़ते दबाव को देखते हुए मेड़बंदी ही सबसे सुलभ और टिकाऊ उपाय है। चौड़ी और ऊँची मेड़ किसान अपने श्रम से तैयार कर सकते हैं, जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति और भू-जल दोनों सुरक्षित रहेंगे।

मेड़बंदी केवल परंपरा नहीं, बल्कि वर्तमान समय की आवश्यकता है—जल संकट के समाधान की दिशा में यह एक सरल, सस्ता और स्थायी कदम है।

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