सुधीर सिंह कुम्भाणी की रिपोर्ट
सकरन (सीतापुर)।
भाजपा के सुशासन के दावों को ठेंगा दिखाती बाल विकास परियोजना सकरन पूरी तरह धराशायी नज़र आ रही है। स्थिति यह है कि क्षेत्र के मासूम बच्चों को न तो आंगनबाड़ी केंद्र नसीब हो रहे हैं और न ही हॉट कुक भोजन। वहीं, प्री-प्राथमिक शिक्षा का सपना भी अधूरा ही रह गया है।
अधबना आंगनबाड़ी केंद्र, भुगतान रोककर जिम्मेदारों ने लटकाया काम
ग्राम पंचायत शाहपुर में अधबना आंगनबाड़ी केंद्र वर्षों से अधर में लटका है। कार्यकारी संस्था द्वारा 80 प्रतिशत कार्य पूरा किए जाने के बाद भी भुगतान न होने से निर्माण कार्य रुक चुका है। पंचायत सचिव का कहना है कि –
“शाहपुर का चार्ज अभी हाल ही में मिला है, शीघ्र ही वित्तीय स्वीकृति के बाद भवन का काम पूरा कर विभाग को सौंप दिया जाएगा।”
इसी तरह सांडा, नसीरपुर और मजलिसपुर समेत कई ग्राम पंचायतों में अब तक आंगनबाड़ी केंद्र ही नहीं बने हैं।
हॉट कुक कागज़ों तक सीमित, बच्चे मिड-डे मील पर निर्भर
परियोजना के तहत बच्चों को मिलने वाला हॉट कुक भोजन केवल कागज़ों तक सीमित है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि आंगनबाड़ी को मिलने वाला राशन कोटेदार और कार्यकत्री आपस में हजम कर लेती हैं। बच्चों को कुछ भी न देकर प्राथमिक विद्यालय के मिड-डे मील पर आश्रित कर दिया जाता है।
आंगनबाड़ी भर्ती में धांधली, मामला हाईकोर्ट तक पहुंचा
सकरन में हाल ही में हुई लगभग दो दर्जन आंगनबाड़ी भर्ती में नियम-कायदों को ताक पर रखकर मनमानी की गई। मदनापुर केंद्र पर ईडब्ल्यूएस वर्ग की एक सीट आवेदिका होने के बावजूद रिश्वत न मिलने के कारण खाली छोड़ दी गई। पीड़िता का मामला अब उच्च न्यायालय तक पहुंच गया है, जहां से उसे न्याय की उम्मीद है।
सवालों के घेरे में जिम्मेदार
ऐसे हालात में यह बड़ा सवाल है कि मासूम कैसे पढ़ेंगे और बढ़ेंगे? जब जिम्मेदार अधिकारी भ्रष्टाचार और लापरवाही में लिप्त हों तो गरीब परिवारों के बच्चों का भविष्य अधर में लटकना स्वाभाविक है। अब देखना यह है कि मासूमों से खिलवाड़ करने वाले जिम्मेदारों पर कानून कब शिकंजा कसता है।
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