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करवा चौथ पर भूख से बेहोश हुईं मनरेगा महिला मजदूर, प्रधान और रोजगार सेवक बने निर्दयी दर्शक

सुधीर सिंह कुम्भाणी, ब्यूरो रिपोर्ट

सकरन/सीतापुर।
मनरेगा जैसी जनकल्याणकारी योजना में फैले भ्रष्टाचार और संवेदनहीनता की पोल उस समय खुल गई जब करवा चौथ जैसे पवित्र दिन ग्राम उमरा कला और लखुवा बेहड़ में काम कर रही कई महिला मजदूरें भूख-प्यास से बेहोश होकर गिर पड़ीं।

मजदूरों की हालत नाजुक

जानकारी के अनुसार, उमरा कला में बंधा पटाई व चकबंध पटाई का कार्य कर रहीं महिलाओं की हालत उपवास और काम के दोहरे दबाव से बिगड़ गई। वहीं, लखुवा बेहड़ में भी महिलाएं तड़पती रहीं लेकिन प्रधान और रोजगार सेवक मूकदर्शक बने रहे।

इंसानियत दिखाने वाले मजदूर

आसपास मौजूद पुरुष मजदूरों ने मानवीय संवेदना दिखाते हुए महिलाओं को तुरंत सकरन के एक निजी अस्पताल पहुंचाया। लेकिन वहां इलाज की जगह रोजगार सेवक ने उल्टे उन्हें धमकाना शुरू कर दिया। और तो और, ग्राम प्रधान लखुवा बेहड़ ने इलाज के लिए ले जाने वाले मजदूरों को हाजिरी काटने की धमकी दी।

भ्रष्टाचार की बू

सूत्रों का कहना है कि दोनों ग्राम पंचायतों में लंबे समय से मनरेगा कार्यों में धांधली, मजदूरों से जबरन काम करवाना, भुगतान में देरी और प्रधान-रोजगार सेवक की मिलीभगत की शिकायतें उठती रही हैं। रजिस्टरों और एनएमएमएस रिकॉर्ड में मजदूरों की संख्या कुछ और दिखाई जाती है जबकि वास्तविकता जमीन पर अलग है।

प्रशासन का रुख

जब इस संबंध में अतिरिक्त कार्यक्रम अधिकारी विकास श्रीवास्तव से बात की गई तो उन्होंने माना कि “करवा चौथ पर महिलाओं को काम पर लगाया ही नहीं जाना चाहिए था, इस पर तुरंत प्रधानों से बात की जाएगी।”

अहम सवाल

क्या यही है विकसित भारत की तस्वीर, जहां आस्था और परंपरा के दिन भी गरीबी और भ्रष्टाचार से महिलाएं मिट्टी में लोटने को मजबूर हो जाएं और जिम्मेदार अधिकारी मौन साधे रहें?

📌 “जनता पूछ रही है— मनरेगा नहीं, अब तो ‘मजदूर रुला योजना’ बन चुकी है।”


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