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बिजली विभाग के निजीकरण के खिलाफ किसान संगठनों ने सौंपा ज्ञापन

विशेष संवाददाता लखनऊ 

• बिजली विभाग के निजीकरण की योजना पर रोक लगाने की मांग
• मुफ्त बिजली, स्मार्ट मीटर योजना की वापसी समेत सात सूत्रीय मांगें
• 16 किसान संगठनों ने साझा ज्ञापन देकर किया विरोध प्रदर्शन

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग के निजीकरण की योजना को लेकर किसानों का आक्रोश लगातार बढ़ता जा रहा है। इसी कड़ी में भारतीय किसान संगठन के नेतृत्व में कुल 16 किसान संगठनों ने 4 जून 2025 को जिला मुख्यालयों पर साझा विरोध प्रदर्शन कर मुख्यमंत्री को संबोधित एक ज्ञापन सौंपा। ज्ञापन के माध्यम से किसान संगठनों ने बिजली विभाग के निजीकरण के फैसले को तत्काल प्रभाव से वापस लेने की मांग की है।

ज्ञापन में किसानों ने आरोप लगाया कि 25 नवंबर 2024 को पॉवर कॉर्पोरेशन की वित्तीय समीक्षा बैठक में दक्षिणांचल और पूर्वांचल वितरण निगमों के निजीकरण का फैसला लिया गया था, जिसे राज्य सरकार का समर्थन प्राप्त है। यह निर्णय किसानों के अनुसार पहले भी 2022 के अंत में लिया गया था, जिससे उनका संदेह और बढ़ गया है।

किसानों ने याद दिलाया कि वे केंद्र सरकार द्वारा लाए गए बिजली संशोधन बिल 2020 का भी लगातार विरोध कर रहे हैं, जो कि 13 महीने चले किसान आंदोलन का एक प्रमुख मुद्दा रहा था। उनका आरोप है कि बिना किसानों से परामर्श के फिर से बिजली संशोधन बिल 2022 लोकसभा में पेश किया गया और अब उत्तर प्रदेश सरकार भी इसी राह पर चल रही है।

ज्ञापन में किसानों की मुख्य मांगें इस प्रकार हैं:

  1. दक्षिणांचल और पूर्वांचल वितरण निगमों के निजीकरण पर पूर्ण रोक।
  2. हर ग्रामीण उपभोक्ता को प्रति माह 300 यूनिट मुफ्त बिजली और किसानों को मुफ्त ट्यूबवेल कनेक्शन।
  3. स्मार्ट मीटर योजना को तत्काल रद्द किया जाए।
  4. किसानों के ट्यूबवेल को 18 घंटे बिना शर्त बिजली आपूर्ति दी जाए।
  5. कनेक्शन चार्ज, ट्रांसफार्मर, मीटर, बिलिंग आदि उपभोक्ताओं से वसूलना बंद हो।
  6. निजी कंपनियों से महंगी बिजली खरीद पर रोक लगाई जाए।
  7. बिजली कर्मचारियों पर लागू की गई श्रमिक विरोधी सेवा नियमावली को वापस लिया जाए और संविदा कर्मचारियों को नियमित किया जाए।

भारतीय किसान संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजेन्द्र यादव और राष्ट्रीय महासचिव राजेश शुक्ला ने ज्ञापन में कहा कि वर्तमान सरकार घाटे के नाम पर बिजली विभाग को निजी हाथों में सौंपना चाहती है, जबकि इसके लिए असली जिम्मेदार सरकार की ही नीतियां हैं—जैसे कि निजी कंपनियों से महंगी बिजली खरीदना और बड़े रसूखदारों के करोड़ों रुपये के बकाया माफ करना।

ज्ञापन में शामिल 16 संगठनों में क्रांतिकारी किसान यूनियन, किसान संग्राम समिति, किसान मजदूर परिषद, अखिल भारतीय एकीकृत किसान सभा, किसान विकास मंच, भाकियू श्रमिक जनशक्ति यूनियन जैसे संगठन प्रमुख हैं। इन सभी संगठनों ने राज्य सरकार से मांग की है कि बिजली को निजी हाथों में जाने से रोका जाए और प्रदेश की जनता के लिए सस्ती व सुगम बिजली सुनिश्चित की जाए।

किसान नेताओं ने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने शीघ्र कदम नहीं उठाया तो आंदोलन को और तेज किया जाएगा।

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