ब्यूरो रिपोर्ट: कल्लू उर्फ रजनीश, लखनऊ
लखनऊ में साइबर ठगी से जुड़े एक ऐतिहासिक मामले में कोर्ट ने रिकॉर्ड समय में फैसला सुनाया है। खुद को फर्जी CBI अफसर बताकर एक महिला डॉक्टर से 85 लाख रुपये की ठगी करने वाले आरोपी देवाशीष राय को कोर्ट ने 7 साल की कठोर सजा सुनाई है।
सीजेएम कस्टम कोर्ट लखनऊ ने महज 438 दिनों में इस गंभीर साइबर अपराध का निर्णय सुनाकर मिसाल कायम की है। यह उत्तर प्रदेश का पहला मामला है, जिसमें डिजिटल अरेस्ट जैसी साइबर क्राइम तकनीक का इस्तेमाल कर की गई ठगी पर इतनी जल्दी कोर्ट का निर्णय आया हो।
कैसे हुई ठगी?
आरोपी देवाशीष राय ने खुद को CBI अधिकारी बताकर महिला डॉक्टर को धमकाया कि उनके खिलाफ केस दर्ज है और उन्हें 10 दिनों तक डिजिटल अरेस्ट में रखा गया। इस दौरान महिला को लगातार कॉल्स, ईमेल्स और ऑनलाइन वीडियो चैट के जरिए मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया। डर के माहौल में फंसाकर किस्तों में कुल 85 लाख रुपये की ठगी की गई।
क्या होता है डिजिटल अरेस्ट?
डिजिटल अरेस्ट का मतलब है कि किसी व्यक्ति को फोन, इंटरनेट और ऑनलाइन गतिविधियों के जरिए इस कदर डराया जाए कि वह घर से बाहर न निकल सके और ठगों की हर बात मानने को मजबूर हो जाए। यह तकनीक अब साइबर अपराधियों का नया हथियार बनती जा रही है।
सराहनीय जांच और तेज़ कार्यवाही
पुलिस और साइबर सेल की संयुक्त जांच में देवाशीष राय को दिल्ली से गिरफ्तार किया गया था। चार्जशीट दाखिल होने के बाद कोर्ट ने तेज़ सुनवाई करते हुए 438 दिनों में यह निर्णय दिया, जिसे एक बड़ी सफलता माना जा रहा है।
लखनऊ पुलिस और न्यायालय की इस तेज़ कार्यवाही ने साबित किया है कि डिजिटल अपराधों के खिलाफ अब सिस्टम सख्ती से और फुर्ती से काम कर रहा है।
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