ब्यूरो चीफ: अमित गुप्ता, सीतापुर
रिपोर्ट: अंकुल गुप्ता
सकरन (सीतापुर)। खरीफ सीजन के चरम पर होते हुए भी क्षेत्र के किसान इस समय यूरिया की भारी किल्लत से जूझ रहे हैं। खेतों में खाद की जरूरत है, लेकिन साधन सहकारी समितियां और खाद गोदाम खाली पड़े हैं। किसानों के लिए यूरिया अब गूलर के फूल की तरह बन गई है—नाम बहुत सुना, लेकिन कभी नजर नहीं आई।
जैसे ही किसी समिति में यूरिया ट्रक पहुंचने की खबर मिलती है, किसानों की लंबी कतारें लग जाती हैं। लेकिन घंटों लाइन में लगने और तेज धूप में तपने के बावजूद अधिकतर किसानों को निराश होकर खाली हाथ लौटना पड़ता है।
कालाबाज़ारी की बू, किसानों में आक्रोश
क्षेत्र के किसान रामपाल का आरोप है कि "यूरिया कहीं और खपाई जा रही है। कुछ खास लोगों को पहले ही माल पहुंचा दिया जाता है।" वहीं हरिराम और शकुंतला देवी जैसे किसान भी कहते हैं कि वितरण महज़ दिखावा है, असली खेल अंदरखाने चल रहा है।
धान, मक्का की बढ़त पर असर, जेब पर सीधी मार
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार यदि अगले 10-15 दिन में खाद नहीं मिली, तो धान व मक्का की फसलें बर्बाद हो जाएंगी। इससे उत्पादन घटेगा, लागत बढ़ेगी, और आखिरकार इसका असर किसान की जेब और आम आदमी की थाली पर पड़ेगा।
राजनीति की भेंट चढ़ी समितियां, दोगुनी आय की जगह दोगुना दर्द
क्षेत्रीय खाद आपूर्ति की जिम्मेदारी जिन साधन सहकारी समितियों पर है, वे अब राजनीतिक गठजोड़ और धनलोलुप संचालकों की शिकार हो चुकी हैं। अरुवा समिति के किसान मेवालाल, शिवकुमार, विनोद, गोविंद, धनराज व छोटेलाल ने बताया कि समिति के नए संचालक खुद की खाद दुकान को चलाने के लिए ही ब्लैक में यूरिया बेच रहे हैं। यदि पड़ोसी सांडा समिति न होती, तो किसानों को एक बोरी खाद तक नसीब नहीं होती।
वहीं, मुर्थना समिति वर्षों से बंद पड़ी है और महराजनगर, दुगाना, कौवाखेरा जैसी समितियां अब केवल सत्तापक्ष के समर्थकों को ही खाद देती हैं।
अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या सरकार इस संकट को समझते हुए गन्ने, धान और मक्का जैसी मुख्य फसलों के लिए यूरिया उपलब्ध करा पाएगी, या फिर किसान कालाबाजारी की मार झेलते हुए महंगे दामों पर खाद खरीदकर 'दोगुनी आय' का सपना खुद ही पालते रहेंगे।
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