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लखनऊ में चेहल्लुम का जुलूस पारंपरिक श्रद्धा के साथ निकला, हजारों अज़ादारों ने किया मातम

ब्यूरो रिपोर्ट: दर्शन गुप्ता ✍️

लखनऊ। राजधानी लखनऊ में शुक्रवार को चेहल्लुम का जुलूस ग़म और अकीदत के माहौल में निकाला गया। यह जुलूस नक्खास स्थित नाज़िम शाहब इमामबाड़ा से शुरू होकर हुसैनाबाद, चौक, नक्खास, विक्टोरिया स्ट्रीट, खालबाजार, तालकटोरा होते हुए तालकटोरा कर्बला पर समाप्त हुआ।

रास्ते भर अज़ादार सीने पर मातम करते हुए, नौहा और सलाम पढ़ते हुए, इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके साथियों की याद में ग़म का इज़हार करते रहे। जगह-जगह फ़ातिहा पढ़ी गई, सबीले लगाई गईं और तबर्रुक बांटा गया। सुरक्षा व्यवस्था के लिए पुलिस और प्रशासन की विशेष तैनाती रही।

चेहल्लुम क्यों मनाया जाता है?
चेहल्लुम (अरबी: أربعين) का अर्थ है — ‘चालीसवां दिन’। यह इस्लामी माह मुहर्रम की 10वीं तारीख़ यानी दिन-ए-आशूरा के 40 दिन बाद मनाया जाता है। आशूरा के दिन 61 हिजरी (680 ई.) में करबला के मैदान में पैग़म्बर-ए-इस्लाम हज़रत मोहम्मद (स.अ.व.) के नवासे इमाम हुसैन (अ.स.) और उनके 72 साथियों ने अन्याय, ज़ुल्म और तानाशाही के ख़िलाफ़ अपने प्राणों की कुर्बानी दी थी।
चेहल्लुम का दिन इस बात का प्रतीक है कि हुसैनियत का पैग़ाम — इंसाफ, सच्चाई और इंसानियत — आज भी ज़िंदा है। इस दिन दुनिया भर के मुसलमान और इंसाफपसंद लोग करबला की कुर्बानी को याद करते हैं।

लखनऊ में परंपरा
लखनऊ में चेहल्लुम के जुलूस की ऐतिहासिक परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है। माना जाता है कि यह परंपरा नवाबी दौर से चल रही है, जब अज़ादारी की रस्में पूरे शानो-शौकत और अनुशासन के साथ निभाई जाती थीं। जुलूस के दौरान नौहा-ख़्वानी, सीनाज़नी और ताज़ियादारी होती है।

माहौल
जुलूस में "या हुसैन", "या अली" के नारों से फिज़ा गूंज उठी। दूर-दूर से आए अज़ादारों ने कर्बला की याद में अश्क बहाए। कई जगह इमामबाड़ों और अंजुमनों ने मिलकर सबीलें लगाईं और तबर्रुक बांटा।

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