ब्यूरो रिपोर्ट — सुधीर सिंह कुम्भाणी ✍️
सकरन (सीतापुर)।
महिला सशक्तिकरण के उद्देश्य से ग्राम पंचायतों में बनाए गए स्वयं सहायता समूह (Self Help Groups) अब सवालों के घेरे में हैं। करोड़ों रुपये की योजनाओं और प्रशिक्षण कार्यक्रमों के बावजूद अधिकांश महिलाओं की आर्थिक स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। वहीं, कुछ चुनिंदा समूहों की महिलाएं अधिकारियों की मिलीभगत से नाजायज फायदा उठाकर अमीर बनती जा रही हैं।
🔹 मामला 1
मनरेगा कार्यों में CIB बोर्ड निर्माण के लिए बनाए गए समूहों में लाभ केवल अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष और सचिव तक सीमित रहा। बाकी सदस्य महिलाएं आज भी आर्थिक तंगी से जूझ रही हैं।
🔹 मामला 2
ग्राम पंचायत बगहाढाख में समूह के नाम पर सस्ता गल्ला दुकान आवंटित हुई, परंतु लाखों रुपये की आमदनी में हिस्सा केवल कुछ महिलाओं तक ही पहुंचा। समूह की अन्य सदस्यों ने बताया कि न तो कोई बैठक होती है और न ही उन्हें किसी वित्तीय लेन-देन की जानकारी दी जाती है। शिकायत है कि समूह की तीन महिलाओं ने मिलकर लाखों का कर्ज निकाल लिया, जबकि भुगतान की जिम्मेदारी सभी सदस्यों पर डाल दी गई है।
🔹 मामला 3
मनरेगा मेट की नियुक्तियों में भी गड़बड़ी सामने आई है। भ्रष्टाचार के चलते कुछ ग्राम पंचायतों में रोजगार सेवकों के कार्य छीनकर महिला मेटों को आईडी दी गई, जिनके जरिए फर्जी हाजिरी (NMMS) का खेल खेला जा रहा है। ग्राम पंचायत नसीरपुर में महिला मेट अनीता कुमारी की आईडी से फर्जी उपस्थिति दर्ज होने का आरोप है।
🔹 मामला 4
सामुदायिक शौचालयों के रखरखाव के लिए समूह की महिलाओं को जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन हर महीने मिलने वाले ₹6,000 की पूरी राशि केवल एक महिला के खाते में जा रही है। बाकी महिलाओं को आज तक कोई लाभ नहीं मिला। पोषण उठान कार्यक्रम में भी अध्यक्ष, कोषाध्यक्ष और सचिव ही कमीशन का लाभ ले रही हैं।
🔹 मामला 5
बीसी सखी, विद्युत सखी, जल सखी जैसी योजनाओं के तहत प्रशिक्षण और रोजगार के अवसर दिए जाने के बावजूद सरकार का लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी अधिकांश महिलाओं की स्थिति नहीं बदली।
ग्रामीणों का कहना है कि एडीओ आईएसबी, बीएमएम, ग्राम प्रधान और पंचायत सचिव सहित कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से यह पूरा तंत्र भ्रष्टाचार में डूबा हुआ है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या महिला सशक्तिकरण अभियान केवल कागजों तक सीमित रह जाएगा या फिर इन गंभीर मामलों की जांच होगी?

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