ब्यूरो रिपोर्ट जहीन खान ✍️
लखनऊ के प्रतिष्ठित किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) में सेवा दे रहे डॉ. आमोद कुमार सचान को उनके रिटायरमेंट से महज तीन दिन पहले बर्खास्त कर दिया गया। यह फैसला KGMU की कार्यपरिषद की बैठक में लिया गया, जो कुलपति डॉ. सोनिया नित्यानंद की अध्यक्षता में हुई। कार्यपरिषद ने डॉ. सचान पर लगे प्राइवेट प्रैक्टिस, निजी संस्थाओं से आर्थिक लाभ उठाने और कई बोर्ड में शामिल होने जैसे गंभीर आरोपों को देखते हुए यह निर्णय लिया।
यह लखनऊ में प्राइवेट प्रैक्टिस को लेकर पहली बड़ी बर्खास्तगी मानी जा रही है।
डॉ. सचान की पत्नी डॉ. ऋचा मिश्रा ने भी उनके खिलाफ 2 मई 2024 को गाजीपुर थाने में FIR दर्ज कराई थी, जिसमें उन्होंने अपने पति पर नकली दवाओं का धंधा करने, साथियों संग साजिश रचने और ट्रस्ट का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया था। उनके आरोपों के बाद ही ईडी और शासन ने भी जांच शुरू की थी।
तीन बार बैठी कार्यपरिषद, नहीं दिया गया अतिरिक्त समय
डॉ. सचान को 4 जुलाई को 180 पेज का जवाब देने वाला नोटिस दिया गया था, जिसका जवाब 6 दिन में मांगा गया। उन्होंने अतिरिक्त समय की मांग की, लेकिन 10 जुलाई को कार्यपरिषद ने इसे खारिज कर दिया। अंततः 13 जुलाई को तीसरी इमरजेंसी बैठक में बर्खास्तगी पर मुहर लगाई गई।
डॉ. सचान बोले- साजिश के तहत हुई कार्रवाई
बर्खास्तगी के बाद डॉ. आमोद कुमार सचान ने बयान जारी कर इसे दुर्भावनापूर्ण और साजिशन कार्रवाई करार दिया। उन्होंने कहा,
"मेरे जीवन के 23 वर्ष KGMU को समर्पित रहे हैं। यह बर्खास्तगी मेरी प्रतिष्ठा धूमिल करने और मानसिक रूप से प्रताड़ित करने का प्रयास है।"
शेखर अस्पताल और मेडिकल कॉलेज के भी हैं मालिक
डॉ. सचान इंदिरा नगर स्थित शेखर हॉस्पिटल के संचालक हैं, जिसे उन्होंने 1985 में 15 बेड से शुरू किया था। इसके अलावा उनके पास बाराबंकी और सीतापुर रोड पर 'हिंद इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज' नाम से मेडिकल कॉलेज भी हैं, जिनका संचालन हिंद चैरिटेबल ट्रस्ट करता है।
आयकर छापे में खुलासा, 1.76 करोड़ की नकदी बरामद
वर्ष 2013 में आयकर विभाग की छापेमारी में उनके पास से 1.76 करोड़ की नकदी और 8 करोड़ की अघोषित आय का खुलासा हुआ था। इस मामले में भी ईडी ने जांच शुरू की थी।
पहले भी हुए हैं कार्य परिषद के फैसले, लेकिन इतनी कड़ी कार्रवाई पहली बार
KGMU में पूर्व में भी फैकल्टी सदस्यों पर कार्यवाही हुई है, लेकिन प्राइवेट प्रैक्टिस को लेकर किसी डॉक्टर की सीधी बर्खास्तगी पहली बार देखने को मिली है।
यह मामला न केवल चिकित्सा जगत बल्कि प्रशासनिक प्रणाली में नैतिकता और पारदर्शिता की दिशा में एक बड़ा संकेत है कि अब सरकारी पद पर रहते हुए निजी लाभ उठाने वालों के खिलाफ सख्त रुख अपनाया जा रहा है।
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