ब्यूरो रिपोर्ट: सैय्यद अल यूसुफ रिज़वी
लखनऊ, 06 जुलाई 2025 — आज शब-ए-आशूरा के मौके पर लखनऊ में ग़मगीन माहौल के बीच जुलूस का आयोजन किया गया। यह जुलूस विक्टोरिया स्ट्रीट स्थित नज़ीम साहब के इमामबाड़े से उठकर दरगाह हज़रत अब्बास अ.स., रुस्तम नगर तक पहुंचकर संपन्न हुआ। जुलूस में अज़ादारों की भारी भीड़ उमड़ी और या हुसैन की सदाओं से फिज़ा मातमी हो गई।
शब-ए-आशूरा इस्लामिक इतिहास की वह रात है, जब इमाम हुसैन अ.स. और उनके 72 जांनिसार साथियों ने करबला के मैदान में ज़ुल्म के खिलाफ आवाज़ बुलंद करते हुए अपने प्राणों की आहुति देने की तैयारी की थी। उन्हें पहले से ही मालूम था कि सुबह शहादत होगी, फिर भी उन्होंने अल्लाह की इबादत और सज्दों में रात गुज़ारी।
इतिहास गवाह है कि यज़ीद, जो एक अत्याचारी, शराबी और जालिम शासक था, उसने इमाम हुसैन अ.स. से अपनी बैअत (समर्थन) मांगने की जुर्रत की। लेकिन इमाम हुसैन अ.स. ने स्पष्ट कह दिया —
"मैं यज़ीद जैसे ज़ालिम की बैअत नहीं करूंगा। मेरी गर्दन कट सकती है, मेरे अहल-ए-बैत कुर्बान हो सकते हैं, लेकिन मैं तुझे स्वीकार नहीं करूंगा।"
इसके बाद 10 मुहर्रम को यज़ीद की फौज ने इमाम हुसैन अ.स., उनके बच्चों, रिश्तेदारों और साथियों को तीन दिन भूखा-प्यासा रखकर शहीद कर दिया। इमाम हुसैन अ.स. ने इंसानियत, हक और इंसाफ के लिए अपना सब कुछ अल्लाह की राह में कुर्बान कर दिया।
आज का यह जुलूस न सिर्फ एक धार्मिक परंपरा था, बल्कि इंसाफ, सब्र, कुर्बानी और ज़ुल्म के खिलाफ संघर्ष की जिंदा मिसाल भी रहा। पूरे रास्ते पर अज़ादारी, नौहा, मातम और मर्सिये पढ़े गए। सुरक्षा के पुख्ता इंतज़ाम भी प्रशासन द्वारा किए गए थे।
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