ब्यूरो रिपोर्ट: दर्शन गुप्ता, लखनऊ
रक्षाबंधन का त्योहार सिर्फ एक धागे तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें विश्वास, प्यार, भावनाएं और वादे भी शामिल होते हैं। लखनऊ में इस त्यौहार की एक अनोखी मिसाल पिछले 35 साल से देखने को मिल रही है, जहां दो हिंदू बहनें एक मुस्लिम भाई को राखी बांधती हैं।
दिलकुशा गार्डन स्थित दरगाह कासिम शहीद बाबा के सज्जादानशीन जुबेर अहमद को अनीता जायसवाल और विमला नाम की दो हिंदू बहनें हर साल राखी बांधती हैं। खास बात यह है कि यह परंपरा वे अपने सगे भाइयों को राखी बांधने से पहले निभाती हैं।
पूरे रिवाज के साथ हुआ कार्यक्रम
इस साल भी अनीता और विमला ने राखी की थाली सजाई। जुबेर अहमद टोपी लगाकर बैठे, बहनों ने उनके माथे पर तिलक लगाया और कलाई पर राखी बांधी। इस दौरान जुबेर अहमद भावुक होकर बोले — "यही असली भारत है।"
35 साल पुराना रिश्ता
जुबेर अहमद ने बताया कि 1990 में यह परंपरा शुरू हुई थी। उनके परिवार में कोई सगी बहन नहीं थी, लेकिन उनके पिता को बेटियां बहुत प्रिय थीं। अनीता और विमला बचपन से दरगाह पर आती थीं और उनके पिता को ‘पापा’ कहकर बुलाती थीं। तब से हर साल वे राखी बांधती हैं और अब उनके बेटे को भी बांध रही हैं ताकि यह परंपरा आगे बढ़ती रहे।
धर्म से ऊपर मोहब्बत
अनीता ने कहा कि जुबेर भाई रक्षा सूत्र का पूरा फर्ज निभाते हैं और सालभर उनका ध्यान रखते हैं। ईद और दिवाली पर वे एक-दूसरे के घर मिठाई लेकर जाते हैं। विमला का कहना है कि 35 साल में कभी यह महसूस नहीं हुआ कि वे अलग धर्म के हैं, बल्कि उनका रिश्ता मोहब्बत और भरोसे से जुड़ा है।
शायर की पंक्तियां हुईं याद
जुबेर अहमद ने कहा — "जब ये बहनें राखी बांधने आती हैं, तो शायर मुनव्वर राणा का शेर याद आता है — ‘किसी के जख्म पर चाहत की पट्टी कौन बांधेगा, अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बांधेगा।’"
इस रक्षाबंधन पर भी सलाखों से लेकर दरगाह तक, भाई-बहन का अटूट रिश्ता एक बार फिर धर्म और जाति की दीवारों को तोड़ता हुआ नजर आया।
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